धर्म और संस्कृति भारतीय जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं, जिनका साथ इसे समृद्ध, सहज और सदैव आत्मर्पणीय बनाता है। भारतीय संस्कृति में ध्यान और भक्ति की अद्वितीय भावना है, जिसका प्रतीक धार्मिक गीतों और भजनों में मिलता है। इमदाद कुन भी ऐसा ही एक महत्वपूर्ण धार्मिक गीत है, जिसके शब्द और भाव अपने श्रोताओं को भगवान के प्रति समर्पित करते हैं। यह गीत सुफी धारा से लिया गया है, जो भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखती है।
इमदाद कुन, इमदाद कुन लिरिक्स
इमदाद कुन, इमदाद कुन, अज़ रंज-ओ-ग़म आज़ाद कुन
दर दीन-ओ-दुनिया शाद कुन, या ग़ौस-ए-आ’ज़म दस्त-गीर
इमदाद कुन, इमदाद कुन, अज़ बंदे ग़म आज़ाद कुन
दर दीन-ओ-दुनिया शाद कुन, या ग़ौस-ए-आ’ज़म दस्त-गीर
असीरों के मुश्किल-कुशा, ग़ौस-ए-आ’ज़म ! फ़क़ीरों के हाजत-रवा, ग़ौस-ए-आ’ज़म
इमदाद कुन, इमदाद कुन, अज़ बंदे ग़म आज़ाद कुन
दर दीन-ओ-दुनिया शाद कुन, या ग़ौस-ए-आ’ज़म दस्त-गीर
गिरा है बलाओं में बंदा तुम्हारा मदद के लिए आओ, या ग़ौस-ए-आ’ज़म
इमदाद कुन, इमदाद कुन, अज़ बंदे ग़म आज़ाद कुन
दर दीन-ओ-दुनिया शाद कुन, या ग़ौस-ए-आ’ज़म दस्त-गीर
तेरे हाथ में हाथ मैं ने दिया है
तेरे हाथ है लाज, या ग़ौस-ए-आ’ज़म
इमदाद कुन, इमदाद कुन, अज़ बंदे ग़म आज़ाद कुन
दर दीन-ओ-दुनिया शाद कुन, या ग़ौस-ए-आ’ज़म दस्त-गीर
निकाला है पहले तो डूबे हुओं को
और अब डूबतों को बचा, ग़ौस-ए-आ’ज़म !
इमदाद कुन, इमदाद कुन, अज़ बंदे ग़म आज़ाद कुन
दर दीन-ओ-दुनिया शाद कुन, या ग़ौस-ए-आ’ज़म दस्त-गीर
भँवर में फँसा है सफ़ीना हमारा बचा ग़ौस-ए-आ’ज़म बचा, ग़ौस-ए-आ’ज़म
इमदाद कुन, इमदाद कुन, अज़ बंदे ग़म आज़ाद कुन
दर दीन-ओ-दुनिया शाद कुन, या ग़ौस-ए-आ’ज़म दस्त-गीर
क़सम है कि मुश्किल को मुश्किल न पाया
कहा हम ने जिस वक़्त या ग़ौस-ए-आ’ज़म
इमदाद कुन, इमदाद कुन, अज़ बंदे ग़म आज़ाद कुन
दर दीन-ओ-दुनिया शाद कुन, या ग़ौस-ए-आ’ज़म दस्त-गीर
मुरीदों को ख़तरा नहीं बहर-ए-ग़म से
कि बेड़े के हैं ना-ख़ुदा ग़ौस-ए-आ’ज़म
इमदाद कुन, इमदाद कुन, अज़ बंदे ग़म आज़ाद कुन
दर दीन-ओ-दुनिया शाद कुन, या ग़ौस-ए-आ’ज़म दस्त-गीर
तुम्हीं दुख सुनो अपने आफ़त-ज़दों का
तुम्हीं दर्द की दो दवा, ग़ौस-ए-आ’ज़म
इमदाद कुन, इमदाद कुन, अज़ बंदे ग़म आज़ाद कुन
दर दीन-ओ-दुनिया शाद कुन, या ग़ौस-ए-आ’ज़म दस्त-गीर
मेरी मुश्किलों को भी आसान कीजे
कि हैं आप मुश्किल-कुशा, ग़ौस-ए-आ’ज़म !
इमदाद कुन, इमदाद कुन, अज़ बंदे ग़म आज़ाद कुन
दर दीन-ओ-दुनिया शाद कुन, या ग़ौस-ए-आ’ज़म दस्त-गीर
कहे किस से जा कर हसन अपने दिल की
सुने कौन तेरे सिवा, ग़ौस-ए-आज़म !
इमदाद कुन, इमदाद कुन, अज़ बंदे ग़म आज़ाद कुन
दर दीन-ओ-दुनिया शाद कुन, या ग़ौस-ए-आ’ज़म दस्त-गीर !
मेरे चाँद ! मैं सदक़े, आजा इधर भी
चमक उठे दिल की गली, ग़ौस-ए-आ’ज़म !
इमदाद कुन, इमदाद कुन, अज़ बंदे ग़म आज़ाद कुन
दर दीन-ओ-दुनिया शाद कुन, या ग़ौस-ए-आ’ज़म दस्त-गीर !
नज़र आए मुझ को न सूरत अलम की
न देखूँ कभी रू-ए-ग़म, ग़ौस-ए-आ’ज़म !
इमदाद कुन, इमदाद कुन, अज़ बंदे ग़म आज़ाद कुन
दर दीन-ओ-दुनिया शाद कुन, या ग़ौस-ए-आ’ज़म दस्त-गीर !
सुफ़ियाना अंदाज़
इमदाद कुन लिरिक्स का मुख्य विषय सुफ़ियाना अंदाज़ में है, जो कि सूफ़ी धारा का एक प्रमुख गुण है। इसमें दिव्यता और भगवान के प्रति भक्ति का अद्वितीय अनुभव है।
लिरिक्स का अर्थ
इमदाद कुन के लिरिक्स में भगवान के प्रति आदर्श और समर्पण का संदेश छिपा होता है। इन लिरिक्स का अर्थ और संदेश ध्यान और भक्ति की अद्वितीय भावना को प्रकट करते हैं।
निष्कर्ष
इमदाद कुन लिरिक्स एक ऐसा धार्मिक गीत है जो आत्मा को भगवान के प्रति समर्पित करने की अद्वितीय भावना को प्रेरित करता है। इसके लिरिक्स, संगीत, और साहित्यिक महत्व इसे भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में स्थापित करते हैं। इस गाने के माध्यम से लोग ध्यान, भक्ति, और समर्पण की अनुभूति करते हैं और धर्म के मार्ग पर अपने आत्मिक यात्रा को आगे बढ़ाते हैं।