“मौला या सल्ली वा सल्लिम” एक धार्मिक गीत है जो इस्लामी समुदाय में बहुत प्रसिद्ध है। इस गीत के बोल और संगीत की खासियत इसे अनूठा और प्रेरणादायक बनाती है। इस गीत का उत्पादन अनेसा सैय्यद ने किया है और बोल अनवर अमीन ने लिखे हैं। “मौला या सल्ली वा सल्लिम” गीत का संगीत हरदी सय्यद ने दिया है। इस गीत को समझने के लिए हमें इसके बोलों की महत्वपूर्णता को समझना जरूरी है।
Maula ya salli wa sallim
मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि
मुह़म्मदुन सय्यिदुल-कौनैनी वस्सक़लयनि
वल्फरीक़यनि मिन उ़र्बि-व्व-मिन अ़जमी
मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि
नबीय्युनल-आमीरु-न्नाही फ़ला अह़दुन
अबर्र फ़ी क़ौलि ला मिन्हु व ला नअ़मि
मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि
हुवल-ह़बीबुल्लज़ी तुरजा शफ़ाअ़तुहु
लिकुल्लि हौलि-म्मिनल-अहवालि मुक़्तह़िमि
मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि
व कुल्लुहुम-म्मिर्रसूलिल्लाही मुल्तमिसुन
गर्फ-म्मिनल-बह़रि अव रश्फ़-म्मिन-द्दियमि
मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि
या अक्रमल्-ख़लक़ि माली मन अलूज़ु बिहि
सिवाक इ़न्द ह़ुलूलिल-ह़ादिसिल-अ़ममि
मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि
सुम्म-र्रिद़ा अ़न अबी-बक्रि-व्व-अ़न उ़मरिन
व्व अ़न अ़लीयि-व्व-अ़न उ़स्मान ज़िल-करमि
मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि
या रब्बि बिल-मुस्त़फ़ा बल्लिग़ मक़ास़िदना
वग़फिर लना मा मद़ा या वासिअ़ल-करमी
मौला या स़ल्ली व सल्लिम दाइमन अबदन
अ़ला ह़बीबिक ख़ैरिल-ख़ल्क़ि कुल्लिहिमि
गीत के बोल: धार्मिक संदेश का प्रसार
“मौला या सल्ली वा सल्लिम” के बोल एक धार्मिक संदेश को संवादित करते हैं। इस गीत में अल्लाह की महिमा और प्रार्थना का संदेश दिया गया है। गीत के बोलों में मुहम्मद साहब के प्रति श्रद्धाभाव और प्रेम का अनूठा संदेश है।
संगीत: ध्वनि का आकर्षण
“मौला या सल्ली वा सल्लिम” का संगीत भी उतना ही मनमोहक है, जितना कि इसके बोल। संगीत की ध्वनि में वह रौशनी है जो दिल को स्पर्श करती है और उसे अपनी ओर आकर्षित करती है।
धार्मिक महत्व: इस्लामी संदेश का प्रसार
“मौला या सल्ली वा सल्लिम” गीत के माध्यम से इस्लामी संदेश का प्रसार होता है। इस गीत में उस्ताद की भावनात्मकता और अनुग्रह की भावना है जो लोगों को उनके धार्मिक मार्ग पर प्रेरित करती है।
समापन
“मौला या सल्ली वा सल्लिम” गीत एक ऐसा साहित्यिक रत्न है जो हमें धार्मिकता का संदेश देता है। इस गीत के बोल और संगीत में उत्साह, श्रद्धा, और प्रेम की भावना है। इस गीत को सुनकर हमें धार्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है और हमें अपने ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना प्राप्त होती है। यह गीत धार्मिकता, मानवता, और समर्पण की भावना को जीवंत करता है और हमें सच्चे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।